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कल रात शहर में / मुकेश पोपली

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खुशियां काफ़ूर सी हैं, धड़कनें नासूर सी हैं
बस्तीा बस्ती के सन्नाकटों की कल बात हो रही थी
जहां सारा खफ़ा है, हर कोई बेवफ़ा है
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