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कि साँस में सुहासिनी
सिहर-सिमट समा रही
 
कि साँस का सुहाग
माँग में निखर उभर उठा
कि गंध-युक्त केश में
बाधा पवन सिहर उठा
 
कि प्यार-पीर में विभौर
बन चली कली सुमन