भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सात हाइकु / जगदीश व्योम

564 bytes removed, 12:25, 13 अगस्त 2011
पिक कूकेगा।
लोक रोपता
महाकाव्य की पौध
लुनता कवि।
 
बादल रोया
धरती भी उमगी
फसल उगी।
 
स्वागत हुआ
दूब-धान है आया
लोक जीवन।
 
मरने न दो
परंपराएँ कभी
बचोगे तभी।
 
नदी बनाता
सोख हवा से नमीं
वृद्ध पहाड़।
 
छीन लेता है
धनी मेघों से जल
दानी पहाड़
</poem>