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|रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल
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[[category: ग़ज़ल]]
<poem>

परदेदारी भी, बेहिजाबी भी
ख़त है सादा तेरा, जवाबी भी

सुब्ह को और शाम को कुछ और
हम नमाज़ी भी हैं, शराबी भी

दिल का ऐसा है एक मुक़ाम जहाँ
काम आती न कामयाबी भी

यों तो मिलता है अजनबी-सा कोई
रंग आँखों का है गुलाबी भी

ले उड़ीं दूर तक हवायें, गुलाब
लाख पत्तों ने बात दाबी भी
<poem>
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