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कहीं चांद राहों में खो गया / बशीर बद्र
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10:08, 22 अगस्त 2011
न कभी हमारे क़दम बढ़े न कभी तुम्हारी झिझक गई
मुझे पदने वाला पढ़े भी क्या मुझे लिखने वाला लिखे भी क्या
जहाँ नाम मेरा लिखा गया वहां रोशनाई उलट गई
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी क़ामयाब न हो सकीं
तेरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
</poem>
Vedmitra
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