भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
बंजर धरती कैसे हरी भरी होगी
चमन पल्लवित-पुष्पित होंगे तो कैसे
चलने की क्षमताएँ गिरवी रख दी हैं
गंतव्यों से परिचित होंगे तो कैसे
बंजर धरती................................................</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
3,286
edits