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अपनापा.. / हरीश बी० शर्मा

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|रचनाकार=हरीश बी० शर्मा
|संग्रह=फिर मै फिर से फिर कर आता
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<Poem>
मैं
हाथ तेरा हाथ में ले
पवन बांधू साथ
चलूँ सागर सात,
सातो भौम
अपनापा रचूँ।
मैं रचूँ एक-एक अणु में आस्था
भाव भर दूँ
सूत्र-से साकार दूँ।
 
कुछ पैहरन बेकार
वो उतार दूँ
हो वही मौलिक
कि जितना रच रहा
आवरण सारे वृथा उघाड़ दूँ।
</poem>
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