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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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तुमने ठीक मिटाया मुझको मेरा नव-निर्माण हो गया
एक संकुचित पुस्तक था मैं देखो आज पुराण हो गया
ग़ज़लें, मुक्तक, गीत सुपावन और छंद अभिराम दिये हैं
सब कहते बरबाद हुआ हूँ मैं कहता कल्याण हो गया
तुमने ठीक मिटाया...............................</poem>
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