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मैं / नवीन सी. चतुर्वेदी

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नया पृष्ठ: मैं<br /> मैं<br /> मैं<br /> ये बकरी वाली 'में-में' नहीं है<br /> <br /> ये वो 'मैं' है<br…
मैं<br />
मैं<br />
मैं<br />
ये बकरी वाली 'में-में' नहीं है<br />
<br />
ये वो 'मैं' है<br />
जो आदमी को <br />
शेर से <br />
बकरी बनाता है..............<br />
<br />
मैं,<br />
हर बार आदमी को,<br />
शेर से बकरी नहीं बनाता...........<br />
<br />
कभी कभी<br />
बकरी को भी,<br />
शेर बना देता है................<br />
<br />
और कभी कभी,<br />
उस का, <br />
स्वयँ से,<br />
साक्षात्कार भी करा देता है..............<br />
<br />
'मैं'<br />
किस के अंदर नहीं है?<br />
बोलो-बोलो!!!<br />
<br />
हैं ना सबके अंदर?<br />
कम या ज़्यादा!!!!!!<br />
<br />
और भी बहुत कुछ कहा जा सकता है<br />
इस 'मैं' के बारे में............<br />
<br />
पर डरता हूँ मैं भी<br />
उस कड़वे सत्य को <br />
सार्वजनिक रूप से <br />
कहते हुए.................<br />
<br />
इसलिए <br />
सिर्फ़ इतना ही कहूँगा<br />
कि मैं<br />
इस 'मैं' का दीवाना तो बनूँ<br />
पर, उतना नहीं-<br />
कि ये 'मैं' तो परवान चढ़ जाए<br />
और खुद मैं- <br />
उलझ के रह जाऊँ,<br />
इस परवान चढ़े हुए,<br />
'मैं' के द्वारा बुनी गयी-<br />
ज़ालियों में............<br />
<br />
आप क्या कहते हैं?<br />
<br />