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नया पृष्ठ: करवा चौथ<br /> बदलता संसार<br /> बदलता व्यवहार<br /> बदलते सरोकार<br /> बदलते स…
करवा चौथ<br />
बदलता संसार<br />
बदलता व्यवहार<br />
बदलते सरोकार<br />
बदलते संस्कार<br />
बदलते लोग<br />
बदलते योग<br />
बदलते समीकरण<br />
बदलते अनुकरण<br />
<br />
बदलता सब कुछ<br />
पर नहीं बदलता <br />
नारी का सुहाग के प्रति समर्पण<br />
साल दर साल निभाती है वो रिवाज<br />
जिसे करवा चौथ के नाम से <br />
जानता है सारा समाज<br />
<br />
इस बाबत<br />
बहुत कुछ शब्दों में<br />
बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा<br />
हम समझें - स्वीकारें <br />
उस के अस्तित्व को<br />
उस के नारित्व को<br />
उस के खुद के सरोकारों को<br />
उस के गिर्द घिरी दीवारों को<br />
<br />
जिस के बिना<br />
इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है <br />
दे कर भी <br />
क्या देंगे <br />
हम उसे <br />
<br />
हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर<br />
कि हम <br />
दे सकें <br />
उसे <br />
उस के हिस्से की ज़मीन<br />
उस के हिस्से की अनुभूतियाँ<br />
उस के हिस्से की साँसें<br />
उस के हिस्से की सोच<br />
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति<br />
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................<br />
बदलता संसार<br />
बदलता व्यवहार<br />
बदलते सरोकार<br />
बदलते संस्कार<br />
बदलते लोग<br />
बदलते योग<br />
बदलते समीकरण<br />
बदलते अनुकरण<br />
<br />
बदलता सब कुछ<br />
पर नहीं बदलता <br />
नारी का सुहाग के प्रति समर्पण<br />
साल दर साल निभाती है वो रिवाज<br />
जिसे करवा चौथ के नाम से <br />
जानता है सारा समाज<br />
<br />
इस बाबत<br />
बहुत कुछ शब्दों में<br />
बहुत कुछ कहने से अच्छा होगा<br />
हम समझें - स्वीकारें <br />
उस के अस्तित्व को<br />
उस के नारित्व को<br />
उस के खुद के सरोकारों को<br />
उस के गिर्द घिरी दीवारों को<br />
<br />
जिस के बिना<br />
इस दुनिया की कल्पना ही व्यर्थ है <br />
दे कर भी <br />
क्या देंगे <br />
हम उसे <br />
<br />
हे ईश्वर हमें इतना तो समर्थ कर<br />
कि हम <br />
दे सकें <br />
उसे <br />
उस के हिस्से की ज़मीन<br />
उस के हिस्से की अनुभूतियाँ<br />
उस के हिस्से की साँसें<br />
उस के हिस्से की सोच<br />
उस के हिस्से की अभिव्यक्ति<br />
आसक्ति से कहीं आगे बढ़ कर......................<br />