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|रचनाकार=अग्निशेखर
|संग्रह=जवाहर टनल / अग्निशेखर
}}
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<Poem>
उठाए उसने
अभिव्यक्ति के खतरे
उठाया हमने
सिर पर आकाश
उधेडी उसने सीवन
सी लिए हमने होठ
उसने कहा लज्जा !
हमने कहा -
खास नहीं
उस पर मंडराए बादल
हमने खोलीं छतरियां
उसने मांगी शरण
हमने दी काल-कोठरी
वह बुदबुदाती रही
कोलकाता
कोलकाता
फुटनोट
चली गई हमारे देश से
बाला तली हमारे देश से
</poem>
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उठाए उसने
अभिव्यक्ति के खतरे
उठाया हमने
सिर पर आकाश
उधेडी उसने सीवन
सी लिए हमने होठ
उसने कहा लज्जा !
हमने कहा -
खास नहीं
उस पर मंडराए बादल
हमने खोलीं छतरियां
उसने मांगी शरण
हमने दी काल-कोठरी
वह बुदबुदाती रही
कोलकाता
कोलकाता
फुटनोट
चली गई हमारे देश से
बाला तली हमारे देश से
</poem>