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|पीछे= कबीर दोहावली / पृष्ठ ४
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अब तौ जूझया ही बरगै, मुडि चल्यां घर दूर । <BR/>
सिर साहिबा कौ सौंपता, सोंच न कीजै सूर ॥ 401 ॥ <BR/><BR/>
गुरुवा तो सस्ता भया, कौड़ी अर्थ पचास । <BR/>
अपने तन की सुधि नहीं, शिष्य करन की आस ॥ 500 ॥ <BR/><BR/>
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