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निबैंरी निहकामता, स्वामी सेती नेह । <BR/>
विषया सो न्यारा रहे, साधुन का मत येह ॥ 601 ॥ <BR/><BR/>
तू तू करूं तो निकट है, दुर-दुर करू हो जाय । <BR/>
जों गुरु राखै त्यों रहै, जो देवै सो खाय ॥ 700 ॥ <BR/><BR/>
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