भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कबीर दोहावली / पृष्ठ १०

715 bytes added, 17:08, 2 जून 2008
कबीर यह तन जात है, सको तो राखु बहोर । <BR/>
खाली हाथों वह गये, जिनके लाख करोर ॥ 903 ॥ <BR/><BR/>
 
सरगुन की सेवा करो, निरगुन का करो ज्ञान । <BR/>
निरगुन सरगुन के परे, तहीं हमारा ध्यान ॥ 904 ॥ <BR/><BR/>
 
घन गरजै, दामिनि दमकै, बूँदैं बरसैं, झर लाग गए। <BR/>
हर तलाब में कमल खिले, तहाँ भानु परगट भये॥ 905 ॥ <BR/><BR/>
 
क्या काशी क्या ऊसर मगहर, राम हृदय बस मोरा। <BR/>
जो कासी तन तजै कबीरा, रामे कौन निहोरा ॥ 906 ॥ <BR/><BR/>