भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
गिरफ़्ता दिल हैं मगर हौसले भी अब के गये //<br>
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो "फ़राज़" <br>
--- --- प्रेषक - संजीव द्विवेदी ------<br>
Anonymous user