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आप की संगत का ये’ अंदाज़ मन को भा गया / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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05:05, 16 सितम्बर 2011
बचते-बचते फिर भी मैं, पानी से धोका खा गया
हम
मोहब्बत
मुहब्बत
में, शिकस्ता पा हुए तो ग़म नहीं
रफ्ता-रफ्ता दोस्तों ,तुम को तो चलना आ गया
</Poem>
Purshottam abbi "azer"
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