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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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न किसी का घर उजड़ता , न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता
मैं खुद अपनी सादगी में ,कभी हारता न बाज़ी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता
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