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{{KKRachna
|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हमने कर ली सफ़र की तैयारी
ये न पूछो किधर की तैयारी
बिछ गए हैं उधर की अंगारे
हमने की है जिधर की तैयारी
एक गाड़ी थी वो भी छूट गई
खा गई हमसफ़र की तैयारी
टूटे दिल को ज़रा तो जुड़ने दो
करना फिर तुम क़हर की तैयारी
मछलियाँ किस तरह यक़ीं कर लें
होगी हित में ‘मगर’ की तैयारी
यार मेरे मुझे तो ले डूबी
कुछ इधर कुछ उधर की तैयारी
ऐ ‘अकेला’ वो फिर नहीं आए
की गई दुनिया भर की तैयारी<poem>
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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
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<poem>
हमने कर ली सफ़र की तैयारी
ये न पूछो किधर की तैयारी
बिछ गए हैं उधर की अंगारे
हमने की है जिधर की तैयारी
एक गाड़ी थी वो भी छूट गई
खा गई हमसफ़र की तैयारी
टूटे दिल को ज़रा तो जुड़ने दो
करना फिर तुम क़हर की तैयारी
मछलियाँ किस तरह यक़ीं कर लें
होगी हित में ‘मगर’ की तैयारी
यार मेरे मुझे तो ले डूबी
कुछ इधर कुछ उधर की तैयारी
ऐ ‘अकेला’ वो फिर नहीं आए
की गई दुनिया भर की तैयारी<poem>