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|रचनाकार=दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'
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वक़्त के सांचे में अब तुम भी ढलो ऐ शम्स जी ,
छल रहे हैं जो तुम्हें उनको छलो ऐ शम्स जी .
सब अंधेरा बांटते हैं इस नगर में आजकल ,
चाहते हो रोशनी तो खुद जलो ऐ शम्स जी .
क्या नहीं होता इरादों में अगर हो जान तो ,
हौसलों की बांह थामें बढ़ चलो ऐ शम्स जी .
ये नदी है प्यार की लम्बी बहुत गहरी बहुत ,
डूब जाओगे न इसकी थाह लो ऐ शम्स जी .
आपके अशआर सुनकर कौन है जो दाद दे ,
गूंगे-बहरों की सभा से फूट लो ऐ शम्स जी .
</poem>