भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सुख / अतुल कनक

793 bytes added, 00:31, 18 सितम्बर 2011
चूळू भर सौरम को
पी लूँ छूँ बसंत।
 
'''राजस्थानी कविता का हिंदी अनुवाद'''
 
आँगन में ही खिल आये हैं
कई गुलाब/ लाल- सफेद- पीले
एक एक डाल पे तीन-तीन
किसी किसी पे तो इससे भी अधिक....
मैं खाद डालता हूँ क्यारी में
हाथों में खुरपी ले कर
मिट्टी को करता हूँ सही
और कपड़ों पर लगी मिट्टी को झटकारने से पहले
ओक में भर कर खुशबू
पी लेता हूँ बसंत।
 
'''अनुवाद : स्वयं कवि'''
 
</poem>
Delete, Mover, Reupload, Uploader
5,492
edits