1,597 bytes added,
16:21, 19 सितम्बर 2011 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गोपाल कृष्ण0 भट्ट 'आकुल'
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
माता कौ वह पूत है, पत्नी कौ भरतार।
बच्चन कौ वह बाप है, घर में वो सरदार।।1।।
पालन पोषण वो करै, घर रक्खै खुशहाल।
देवै हाथ बढ़ाय कै, सुख दुख में हर हाल।।2।।
मैया कौ अभिमान है, माँग भरै सिन्दूर।
दादा-दादी हम सभी, रहैं न उनसै दूर।।3।।
अपनौ-अपनौ काम कर देवैं जो सहयोग।
पिता न पीछै कूँ हटै, कैसोहु हो संयोग।।4।।
कधै सौं कंधा मिला, जा घर में हो काज।
पिता कमाये न्यून भी, रुके ना कोई काज।।5।।
प्रतिनिधित्व घर कौ करै, जग या होय समाज।
बंधु बांधवों में रहै, बन कै वो सरताज।।6।।
वंश चलै वा से बढ़ै, कुल कुटुम्ब कौ नाम।
मात-पिता कौ यश बढ़ै, करें सपूत प्रनाम।।7।।
<poem/>