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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
कहाँ ख़ुश देख पाती है किसी को भी कभी दुनिया
सुकूँ में देखकर हमको न कर ले ख़ुदकुशी दुनिया

ख़ता मुझसे जो हो जाए, नज़रअंदाज़ कर देना
कभी मत रूठ जाना तुम, तुम्हीं से है मेरी दुनिया

अरे नादाँ, बस अपने काम से ही काम रक्खा कर
तुझे क्या लेना-देना है बुरी हो या भली दुनिया

मिला है राम को वनवास, ईशू को मिली सूली
हुई है आज तक किसकी सगी ये मतलबी दुनिया

समय का फेर है सब, इसको ही तक़दीर कहते हैं
हुआ आबाद कोई तो किसी की लुट गई दुनिया

जो पैसा हो तो सब अपने, न हो तो सब पराए हैं
ज़रा सी उम्र में ही मैंने यारो देख ली दुनिया

न हँसने दे, न रोने दे, न जीने दे, न मरने दे
करें तो क्या करें क्या चाहती है सरफिरी दुनिया

'अकेला' छोड़ दे हक़ बात पे अड़ने की ये आदत
सर आँखों पर बिठा लेगी तुझे भी आज की दुनिया
<poem>
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