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'''''अभिमत/कवर टिप्पणी'''''
*श्री वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की कुछ ग़ज़लें पढ़ने का मुझे अवसर मिला । इन दिनों हिन्दी में ग़ज़लों की बाढ़ आई हुई है जिसके कारण ग़ज़ल के नाम पर बहुत कुछ कूड़ा.करकट इकट्ठा हो रहा है । हिन्दी के अधिकांश ग़ज़लकारों को न तो ग़ज़ल के मुहावरे का ज्ञान है और न उसकी आत्मा से परिचय है । लेकिन 'अकेला' अपवाद हैं । उनकी ग़ज़लों में भरपूर शेरीयत और त्गज्ज़ुल तग़ज़्जुल है । छोटी बड़ी सभी प्रकार की बहरों में उन्होंने नये नये प्रयोग किये हैं और वे ख़ूब सफल भी हुए हैं । उनके शेरों में ये ख़ूबी है कि वे ख़ुद.बख़ुद होठों पर आ जाते हैं । जैसे यह शेर.
इक रूपये की तीन अठन्नी मांगेगी
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