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|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
प्यार किसी का पाले कौन
दिल में आग छुपाले कौन

लुट ही गया ख़जाना यार
अब ले आया ताले कौन

झूठों की इस नगरी में
सच की आदत डाले कौन

बिन रिश्वत करवाया काम
तुम हो क़िस्मत वाले कौन

पेट भरा हो तो सब ठीक
भूखे भजन गवा ले कौन

आप हमें दिल दे बैठे
सोचा होगा टाले कौन

दिल है मोम ‘अकेला’ का
फौलादों में ढाले कौन
<poem>
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