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{{KKRachna

|रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

|संग्रह=शेष बची चौथाई रात / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'

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<poem>
रो दिए खो चुके आत्मबल हैं नयन
बिन तुम्हारे हमारे विकल हैं नयन

उनकी सारी व्यथा अनकहे कह गये
मन के भावों की रखते नक़ल हैं नयन

नेह होता हृदय से ये माना सखे
नेह की किन्तु करते पहल हैं नयन

टीस मेरे हृदय से उठी है मगर
देखता हूँ कि उसके सजल हैं नयन

रूप का तुम सरोवर हो ओ प्रेयसी
इस सरोवर में ज्यों दो कमल हैं नयन
<poem>
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