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{{KKCatKavita}}<poem>यूं मिळिया आपां
म्हैं थां सूं मिळियौ जकौ म्हैं नीं हौ थां ई म्हां सूं मिळिया जका थां नीं हा
मिळतां पांण म्हैं तपाक सूं हाथ आगै कियौ जकौ म्हां’रौ नीं हौ थां ई झट हाथ लांबौ कियौ जकौ थां’रौ नीं हौ
यूं आपां मिळ नै दूजा-दूजा हाथ मिळाया दूजी-दूजी मुळक पसारी खिणखौळै चढिया
घणी सारी दूजी-दूजी बातां करी
इण भांत बार-बार दूजा-दूजा आपां एक-दूजे सूं मिळिया
आपां कदैई मिळिया ?
</poem>
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