भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हिम पिघला है / कविता वाचक्नवी

4 bytes added, 23:12, 27 सितम्बर 2011
निष्क्रमण
कायकी हिम-वसनों से,
 
अविरल, अविकल
मधु-तरंग की
उच्छवासों उच्छ्वासों का
सतत निरंतर शोर
ओर न छोर
59
edits