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|रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"
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अपने लहू से सींचो ,अब प्यार के चमन को
जड़ से उखाड़ फेंको ,तुम नफरतों के वन को

ये विश्व है तुम्हार ,ये विश्व है तुम्हीं से
धरती को जगमगाओ ,रौशन करो गगन को

माना है काम मुश्किल ,पर कर सको तो कर लो
खुद को बदल के देखो, पूरा करो वचन को

धरती पे बोझ बन कर ,जीने से क्या है हासिल
कुर्बान हक़ पे करदो ,मिटटी के तन- बदन को

चमकेगा तू भी "आज़र" ,तारों के साथ नभ में
चुप-चाप सह सका गर जीवन की हर तपन को
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