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{{KKRachna
|रचनाकार=निश्तर ख़ानक़ाही
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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>
रिश्ता ही मेरा क्या है अब इन रास्तों के साथ
उसको विदाअ कर तो दिया आँसुओं के साथ

अब फ़िक्र है कि कैसे यह दरिया उबूर (१) हो
कल किश्तियाँ बँधी थीं इन्हीं साहिलों के साथ

अब फर्श हैं हमारे , छतें दूसरों की हैं
ऐसा अज़ाब पहले कहाँ था घरों के साथ

कैसा लिहाज़ -पास , कहाँ की मुरव्वतें
जीना बहुत कठिन है , अब इन आदतों के साथ

बिस्तर हैं पास-पास मगर कुबतें(२)नहीं
हम घर में रह रहे हैं ,अजब फ़ासलों के साथ

मैयत(३)को अब उठाके ठिकाने लगाइये
मौक़े के सब गवाह हुए क़ातिलों के साथ

शब्दार्थ
१--तट
२- निकटता
३-मृतक
<poem>