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Kavita Kosh से
उसको विदाअ कर तो दिया आँसुओं के साथ
अब फ़िक्र है कि कैसे यह दरिया उबूर (१) हो
कल किश्तियाँ बँधी थीं इन्हीं साहिलों के साथ
जीना बहुत कठिन है , अब इन आदतों के साथ
बिस्तर हैं पास-पास मगर कुबतेंक़ुर्बतें(२)नहीं
हम घर में रह रहे हैं ,अजब फ़ासलों के साथ