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दस्तक / मधुभूषण शर्मा 'मधुर'

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आओ कि हम समझ लें नापाक सब इरादे
कह दें कि बस सुनेंगे पाकीज़गी की दस्तक !
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अमूमन है होती
सहर कोई जैसी
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मगर दूर बैठे
थे कुछ ऐसे साए
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अमूमन है ढलती
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अच्छी किसे है लगती बेहूदगी की दस्तक