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एक वह / निशान्त

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{{KKRachna
|रचनाकार=निशान्त
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}}
{{KKCatKavita‎}}<poem>हजारों-हजार
गुजरते हैं
गली में से
किसी का
पता भी नहीं चलता
एक वह है
जब भी गुजरता है
गंधा देता है
सारी गली
धुएं और धूल से</poem>
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