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|संग्रह=आ सदी मिजळी मरै / सांवर दइया
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<poem>चालूं कित्ती’क दूर और कठै
अंत बिहूणै पथ रो छोर कठै

उजास खातर भटकै मन म्हारो
आं काळी रातां री भोर कठै

झटकै सूं तोड़ नांखै स्सै जाळ
बताओ तो सरी बो जोर कठै

थारी-म्हारी न्यारी सांसां नै
बांधलै सागै बा डोर कठै

अठै जुगां सूं छांटां नै तरसां
कांई करां जे बरसै लोर बठै
</poem>
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