भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सम्पूर्णता / आग्नेय

100 bytes added, 05:51, 9 नवम्बर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=आग्नेय
|संग्रह=मेरे बाद मेरा घर/ आग्नेय; लौटता हूँ उस तक / आग्नेय
}}
{{KKCatKavita}}<poem>
वह आकाश की ओर
 
देखती रही
 
जबकि मैं उसके निकट
 
छाया की तरह लिपटा था,
 
उसका हाथ
 
दूसरी स्त्री के कन्धे पर था,
 
जबकि मैं उसके चारों ओर
 
हवा की तरह ठहरा था,
 
भरी-पूरी स्त्री का भरा-पूरा प्यार
 
अन्तिम इच्छा की तरह जी लेने के लिए
 
मैं उसे हरदम
 
पल्लवित और फलवती
 
पृथ्वी की सम्पूर्णता की तरह
 
रचता रहूंगा
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits