भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम देखेंगे / फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

268 bytes added, 01:48, 20 अक्टूबर 2011
लाज़िम है कि हम भी देखेंगे
वो दिन कि जिसका वादा है
जो नौहलोह-ए-अजल अज़ल<ref>सनातन पन्ना</ref> में लिखा हैजब ज़ुल्म-ओ-सितम के कोह-ए-गरां<ref>घने पहाड़ </ref>
रुई की तरह उड़ जाएँगे
हम महक़ूमों के पाँव तले
जब अर्ज-ए-ख़ुदा के काबे से
सब बुत उठवाए जाएँगे
हम अहल-ए-सफ़ा, मरदूद-ए-हरम<ref> पवित्रता या ईश्वर से वियोग</ref>
मसनद पे बिठाए जाएँगे
सब ताज उछाले जाएँगे
सब तख़्त गिराए जाएँगे
 
बस नाम रहेगा अल्लाह का
जो वायब ग़ायब भी है हाज़िर भीजो नाज़िर मंज़र भी है मंज़र नाज़िर<ref>देखने वाला </ref> भीउट्ठेगा नलहन अन-अल-हक़ का नारा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
और राज़ करेगी खुल्क-ए-ख़ुदा
जो मैं भी हूँ और तुम भी हो
</poem>
 
==शब्दार्थ ==
 
</references>
160
edits