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पथ की पहचान / हरिवंशराय बच्चन

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|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन
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पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले<br><br>ले।
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानीअनिश्चित किस जगह पर सरित,<br>हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानीगिरि,<br>अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्यागह्वर मिलेंगे,<br>है अनिश्चित किस जगह पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानीबाग वन सुंदर मिलेंगे,<br>किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती अनिश्चित,हैअनिश्चित कब सुमन,<br>कब कंटकों के शर मिलेंगेखोल इसका अर्थकौन सहसा छूट जाएँगे, पंथीमिलेंगे कौन सहसा,आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, पंथ का अनुमान ऐसी आन कर ले।<br>पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।<br><br>
कौन कहता है अनिश्चित किस जगह पर सरितकि स्वप्नों को न आने दे हृदय में, गिरिदेखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, गह्वर मिलेंगेअपने समय में,<br>है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगेऔर तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,<br>किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगीये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में, यह भी अनिश्चित,<br>है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों किन्तु जग के शर मिलेंगे<br>कौन सहसा छूट जाएँगेपंथ पर यदि, मिलेंगे कौन सहसास्वप्न दो तो सत्य दो सौ,<br>आ पड़े कुछ स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन ज्ञान कर ले।<br>पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।<br><br>
कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,<br>देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,<br>और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,<br>ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,<br>किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,<br>स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।<br>पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।<br><br> स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,<br>पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,<br>रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,<br>रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,<br>आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,<br>कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।<br>पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।<br><br>
यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,<br>अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,<br>तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,<br>सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,<br>हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,<br>तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।<br>
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
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