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{{KKPrasiddhRachna}}<poem>विरह का जलजात जीवन, विरह का जलजात!<br>वेदना में जन्म करुणा में मिला आवास;<br>अश्रु चुनता दिवस इसका, अश्रु गिनती रात!<br>जीवन विरह का जलजात!<br><br>
आँसुओं का कोष उर, दृगु अश्रु की टकसाल;<br>तरल जल-कण से बने घन सा क्षणिक् मृदु गात!<br>जीवन विरह का जलजात!<br><br>
अश्रु से मधुकण लुटाता आ यहाँ मधुमास!<br>अश्रु ही की हाट बन आती करुण बरसात!<br>जीवन विरह का जलजात!<br><br>
काल इसको दे गया पल-आँसुओं का हार;<br>पूछता इसकी कथा निश्वास ही में वात!<br>जीवन विरह का जलजात!<br><br>
जो तुम्हारा हो सके लीलाकमल यह आज,<br>खिल उठे निरुपम तुम्हारी देख स्मित का प्रात!<br>जीवन विरह का जलजात!<br><br/poem>