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Kavita Kosh से
''' बेशर्म कहानियां '''
ये जो कहानियां हैं
बडी मुंहफट्ट और बदतमीज हैं,
चिरकुट पुरखों की
रही-सही अस्मत भी
नीलाम कर देती हैं,
पढाकू कुक्कुरों से नुचवाने-छितराने
हर डगर, हर पहर पर
बांहें फ़ैलाए--सैकडों-हजारों,
अनचाहे मिल जाती हैं,
बीते-अनबीते दिन-रातें
देहाती इलाकों की गोबरैली झुग्गियों में
खरहर जमीन पर माई के हाथों
पाथी हुई लिट्टीयां लिट्टियाँ
लहसुनिया चटनी से
अघा-अघा चंभवाती हैं,
खानाबदोशों, लावारिस लौडों,
बहुरुपियों, फक्कडोंफक्कड़ों, हिजडों हिजड़ों और गुंडो
के तहजीबो-करतूतो को
अनायास मुझसे ही क्यों