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Kavita Kosh से
छोरी में छोरे और छोरों में छोरियां,
रंडों में रंडियां,
ब्लाउज और साड़ी में कराते कराटे और पाप वाली
शहरी रणचंडियाँ
काल और अकाल
सब कुछ समेटे हुए
ज़िंदगी के ज्वार-भातेभाटे
गोद में दुलराती हैं,
पर, जब जी में आया हमें