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रजनी की झाई, वासर मे झलकती है ।
चाहत चकोर,सुर ओर द्रग च्होर छोर करि, चकवा की चहाती छाती तजि धीर धसकति है।
चन्द के भरम होत मोद हे कुमोदिनी को,
ससि संक पंकजिनी फुलि न सकति है।
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