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बारिश हुई तो / परवीन शाकिर

88 bytes removed, 22:56, 12 नवम्बर 2011
|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=
}}{{KKAnthologyVarshaKKCatKavita}}[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>बारिश हुई तो फूलों के तन चाक हो गये<br>मौसम के हाथ भीग के सफ़्फ़ाक हो गये<br><br>
बादल को क्या ख़बर कि बारिश की चाह में<br>कितने बुलन्द-ओ-बाला शजर ख़ाक हो गये<br><br>
जुगनू को दिन के वक़्त पकड़ने की ज़िद करें<br>बच्चे हमारे अहद के चालाक हो गये<br><br>
लहरा रही है बर्फ़ की चादर हटा के घास<br>सूरज की शह पे तिनके भी बेबाक हो गये<br><br>
सूरज दिमाग़ लोग भी इब्लाग़-ए-फ़िक्र में<br>ज़ुल्फ़-ए-शब-ए-फ़िराक़ के पेचाक हो गये<br><br>
जब भी ग़रीब-ए-शहर से कुछ गुफ़्तगू हुई<br>लहजे हवा-ए-शाम के नमनाक हो गये<br><br>
साहिल पे जितने आबगुज़ीदा थे सब के सब<br>दरिया के रुख़ बदलते ही तैराक हो गये<br><brpoem>