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हे राम! / विजय कुमार पंत

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गाँधी किताबों, चलचित्रों में बिकता है
देखता है अपने आजाद नौनिहालों को , सिसकता है
कृष्ण भी डर कर छोड़ चुके हैं रण भूमि
कंस भी इतने कन्सो को देख कर झिझकता है
मार -कट लूटपाट भक्त करता है
नहीं है ये विद्वान रावन का काम
हे राम !
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