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{{KKRachna
|रचनाकार=नंदकिशोर आचार्य
|संग्रह=केवल एक पत्ती ने / नंदकिशोर आचार्य}}<poem>जो कुछ कहना हो उसे--खुद —ख़ुद से भी चाहे—
व्यंजना में कहती है वह
कभी लक्षणा में
अभिधा में नहीं लेकिन
कभी
कोई अदालत है प्रेम जैसे
कबूल क़बूल अभिधा में जो कर लिया--सजा —सज़ा से बचेगी कैसे! 15 अप्रैल 2010
</poem>
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