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{{KKRachna
|रचनाकार='अना' क़ासमी
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ ।
बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।
महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ ।
लहजा था ना-शनास[1] <ref>अपरिचित</ref> मगर मुस्कुराया हाथ ।
फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी,
बादे सबा[2] <ref>सुबह की ख़ुशबूदार हवा</ref> ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।
यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम[3] <ref>तअल्लुक़ात</ref> हैं आज कल,
हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।
मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी,
अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।
</poem>शब्दार्थ:{{KKMeaning}} ↑ अपरिचित↑ सुबह की ख़ुशबूदार हवा↑ तअल्लुक़ात<ref></ref>