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|रचनाकार=वेणु गोपाल
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पाँच जोड़ बाँसुरी

बासन्ती रात के विह्वल पल आख़िरी

पर्वत के पार से बजाते तुम बाँसुरी

पाँच जोड़ बाँसुरी


वंशी स्वर उमड़-घुमड़ रो र्हा

मन उठ चलने को हो रहा

धीरज की गाँठ खुली लो लेकिन

आधे अँचरा पर पिय सो रहा

मन मेरा तोड़ रहा पाँसुरी

पाँच जोड़ बाँसुरी
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