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Kavita Kosh से
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उस मधुघट से होठ लगाने दो तुम मुझको भी हे कवी कवि दानी <br />
जिसमे डूब निकाली तुमने पद्मावत की रतन कहानी <br />
जिसकी प्रतिध्वनियाँ आती है हर नर नारी के चित उर से <br />