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शिला सीने पर धरी है
क्या इसी दिन के लिए
पसलियों के चटखने को
डबडबाई आँख
गड़ रहा है ज़हन हन में बल्लम
बेरहम ठोकर समय की
किस तरह इनकी चुकाऊँ
खोपड़ी में फट रहे हैं बम
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