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आदमी बुलबुला है / गुलज़ार

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'आदमी बुलबुला है पानी का<br /> और पानी की बहती सतह पर टूटत...' के साथ नया पन्ना बनाया
आदमी बुलबुला है पानी का<br />
और पानी की बहती सतह पर टूटता भी है, डूबता भी है,<br />
फिर उभरता है, फिर से बहता है,<br />
न समंदर निगला सका इसको, न तवारीख़ तोड़ पाई है,<br />
वक्त की मौज पर सदा बहता आदमी बुलबुला है पानी का।<br />
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