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जिसकी दीदो-तलब वहम समझे थे हम
रू-ब-रू फिर से सरे-रहगुज़र आ गए
सुबह-ए-फ़र्दा <ref>कल की सुबह </ref> को फिर दिल तरसने लगाउम्र-रफ़्तः <ref>गतिमान उम्र<ref> तेरा ऐतबार आ गया
रुत बदलने लगी रंजे-दिल देखना
रंगे-गुलशन से अब हाल खुलता नहीं
ज़ख़्म छलका कोई या गुल खिला
अश्क उमड़े कि अब्र-ए-बहार <ref>बहार के बादल</ref> आ गया
खू़न-ए-उश्शाक़<ref> आशिक़ (बहुवचन) </ref> से जाम भरने लगे
मयकशों पर हुआ मुहतसिब मेहरबान
दिलफ़िगारों पे क़ातिल को प्यार आ गया
 
==शब्दार्थ ==
<references/>
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