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दफ़्तर के बाद-२ / रमेश रंजक

No change in size, 06:01, 19 दिसम्बर 2011
दिवस दूना
नींद पूरी भर नहीं पाती
धूप गुब्बारे सरीकीसरीखी
फैलती जाती ।
रात आधी...
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